मत सता मुझ को आन आन अज़ीज़
मत सता मुझ को आन आन अज़ीज़
टुक कहा भी किसी का मान अज़ीज़
क्यूँके दिल उस से फेर लूँ नासेह
जिस से रखता नहीं हूँ जान अज़ीज़
याँ है ख़्वाहिश ख़दंग की तेरे
न रखे गो कि वाँ कमान अज़ीज़
दिल इधर खींचता है सीना उधर
सब को होता है मेहमान अज़ीज़
दिल से ख़ादिम हूँ मैं 'बयाँ' उन का
जितने हैं मेरे मेहरबान अज़ीज़
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