ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दिया
ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दिया
जो लिया उस का एवज़ उस से मुझे बेहतर दिया
दूर तुझ से साग़र-ए-मय पर नज़र मैं ने जो की
कासा अपना चश्म ने ख़ूनाब-ए-दिल से भर दिया
जो सुलूक अब दिल में आवें कर मुझे तक़दीर ने
दस्त ओ बाज़ू बाँध कर तेरे हवाले कर दिया
दिलबरों के शहर में बेगानगी अंधेर है
आश्नाई ढूँडता फिरता हूँ मैं ले कर दिया
बाज़े ही औक़ात राहत हम को दी है चर्ख़ ने
रंज ओ ग़म ही उस सितमगर ने 'बयाँ' अक्सर दिया
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