ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
दिल की आवाज़ अजब दर्द भरी आती है
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वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
कभी दर पर कभी है रस्ते में
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद