ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
जगाया नींद से जागा तो फिर सुला भी दिया
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जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
अहद के साथ ये भी हो इरशाद