कभी दर पर कभी है रस्ते में
नहीं थकती है इंतिज़ार से आँख
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ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
अहद के साथ ये भी हो इरशाद