बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
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पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
कभी दर पर कभी है रस्ते में
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है