अहद के साथ ये भी हो इरशाद
किस तरह और कब मिलेंगे आप
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है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
कभी दर पर कभी है रस्ते में
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई