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जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप - बशीरुद्दीन अहमद देहलवी कविता - Darsaal

जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप

जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप

नहीं मालूम कब मिलेंगे आप

जाइए जाइए ख़ुदा-हाफ़िज़

देखिए बिछड़े कब मिलेंगे आप

हश्र में आप ही मिलेंगे क्या

एक से एक सब मिलेंगे आप

होगा मेरे लिए वो ईद का दिन

आप से आ के जब मिलेंगे आप

अहद के साथ ये भी हो इरशाद

किस तरह और कब मिलेंगे आप

ज़िंदगी में तो मिल नहीं सकते

हूँगा जब जाँ-ब-लब मिलेंगे आप

वादा-ए-वस्ल पर न क्यूँ ख़ुश हूँ

मैं ने समझा कि अब मिलेंगे आप

नहीं दुनिया में जब बशीर-ए-हज़ीं

किस तरह उस से अब मिलेंगे आप

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