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सुहाने सपने आए हैं - बशीर महताब कविता - Darsaal

सुहाने सपने आए हैं

सुहाने सपने आए हैं

लुभाने सपने आए हैं

मुझे मंज़िल की दावत है

बुलाने सपने आए हैं

मिरी बेदार आँखों को

सजाने सपने आए हैं

मैं इक मुद्दत से सोया था

जगाने सपने आए हैं

मुझे पाने तुम आए हो

गँवाने सपने आए हैं

ये सपने जा नहीं सकते

चुराने सपने आए हैं

ये अरमाँ फिर से तोड़ेंगे

दिखाने सपने आए हैं

नया सा खेल है कोई

पुराने सपने आए हैं

मुझे तो आख़िरी दम तक

हँसाने सपने आए हैं

अजब 'महताब' आँखों के

दिवाने सपने आए हैं

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