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चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है - बशीर महताब कविता - Darsaal

चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है

चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है

फ़क़त इक बार ही कह दो हमें तुम से मोहब्बत है

ये मौसम भी सुहाना है तिरी यादों के मेले हैं

तिरे बिन एक भी लम्हा बिता लेना क़यामत है

बुरा कहता है मुझ को ये ज़माना मैं ने माना है

न जाने क्यूँ उसे तुझ से नहीं कोई शिकायत है

अचानक यूँ जो मुझ से बद-गुमाँ तू हो गया हमदम

मुझे लगता है ये मेरे रक़ीबों की शरारत है

नहीं कोई ख़ता मेरी वो फिर भी ज़ख़्म देते हैं

मैं हूँ बीमार-ए-उल्फ़त बस दवा मेरी मोहब्बत है

रहे कब तक भला महताब तन्हाई के आलम में

कि अब तो आ भी जा उस को फ़क़त तेरी ज़रूरत है

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