Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_c452243492d02dd4cb7446b68fb1c51c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है - बशीर फ़ारूक़ कविता - Darsaal

वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है

वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है

और कभी दशना-ओ-ख़ंजर की तरह लगता है

ले के आया हूँ मैं कुछ ख़्वाब उन आँखों के लिए

आइना भी जिन्हें पत्थर की तरह लगता है

हादसे ऐसे भी गुज़रे कि तसव्वुर जिन का

दिल को छू जाए तो ठोकर की तरह लगता है

हलचलें दायरा-ए-जाँ में छुपी रहती हैं

जिस से मिलिए वो समुंदर की तरह लगता है

कैसा मौसम है कि चुभती हैं बदन में किरनें

सर पे सूरज किसी ख़ंजर की तरह लगता है

आदमी शिद्दत-ए-एहसास का मारा हो अगर

बर्ग-ए-गुल भी उसे पत्थर की तरह लगता है

दश्त-ए-बे-आब में जलते हुए होंटों को 'बशीर'

एक क़तरा भी समुंदर की तरह लगता है

(763) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai In Hindi By Famous Poet Bashir Farooq. Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai is written by Bashir Farooq. Complete Poem Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai in Hindi by Bashir Farooq. Download free Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai Poem for Youth in PDF. Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Kabhi ShaKH-e-gul-e-tar Ki Tarah Lagta Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.