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ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं - बशीर बद्र कविता - Darsaal

ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं

ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं

मिरे बदन पे किसी दूसरे की शाल नहीं

उदास हो गई एक फ़ाख़्ता चहकती हुई

किसी ने क़त्ल किया है ये इंतिक़ाल नहीं

तमाम उम्र ग़रीबी में बा-वक़ार रहे

हमारे अहद में ऐसी कोई मिसाल नहीं

वो ला-शरीक है उस का कोई शरीक कहाँ

वो बे-मिसाल है उस की कोई मिसाल नहीं

मैं आसमान से टूटा हुआ सितारा हूँ

कहाँ मिली थी ये दुनिया मुझे ख़याल नहीं

वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था

बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं

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