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वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो - बशीर बद्र कविता - Darsaal

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

इतना ही उस का साथ था अफ़्सोस मत करो

इंसान अपने आप में मजबूर है बहुत

कोई नहीं है बेवफ़ा अफ़्सोस मत करो

इस बार तुम को आने में कुछ देर हो गई

थक-हार के वो सो गया अफ़्सोस मत करो

दुनिया में और चाहने वाले भी हैं बहुत

जो होना था वो हो गया अफ़्सोस मत करो

इस ज़िंदगी के मुझ पे कई क़र्ज़ हैं मगर

मैं जल्द लौट आऊँगा अफ़्सोस मत करो

ये देखो फिर से आ गईं फूलों पे तितलियाँ

इक रोज़ वो भी आएगा अफ़्सोस मत करो

वो तुम से आज दूर है कल पास आएगा

फिर से ख़ुदा मिलाएगा अफ़्सोस मत करो

बे-कार जी पे बोझ लिए फिर रहे हो तुम

दिल है तुम्हारा फूल सा अफ़्सोस मत करो

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