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उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ - बशीर बद्र कविता - Darsaal

उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ

उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ

मिरे गिलास में थोड़ी शराब दे जाओ

बहुत से और भी घर हैं ख़ुदा की बस्ती में

फ़क़ीर कब से खड़ा है जवाब दे जाओ

मैं ज़र्द पत्तों पर शबनम सजा के लाया हूँ

किसी ने मुझ से कहा था हिसाब दे जाओ

अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैं

गए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ

फिर उस के बा'द नज़ारे नज़र को तरसेंगे

वो जा रहा है ख़िज़ाँ के गुलाब दे जाओ

मिरी नज़र में रहे डूबने का मंज़र भी

ग़ुरूब होता हुआ आफ़्ताब दे जाओ

हज़ार सफ़्हों का दीवान कौन पढ़ता है

'बशीर-बद्र' का कोई इंतिख़ाब दे जाओ

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