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मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे - बशीर बद्र कविता - Darsaal

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे

नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं

ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे

ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब

तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे

मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी जिस्म-ओ-जाँ के मज़ार पर

न दिए जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे

मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा

तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे

मैं ग़ज़ल की शबनमी आँख से ये दुखों के फूल चुना करूँ

मिरी सल्तनत मिरा फ़न रहे मुझे ताज-ओ-तख़्त ख़ुदा न दे

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