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ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में - बशीर बद्र कविता - Darsaal

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला

ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी

बिजली सी घटाओं में ख़ुशबू सी अदाओं में

मौसम का इशारा है ख़ुश रहने दो बच्चों को

मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में

हम चाँद सितारों की राहों के मुसाफ़िर हैं

हम रात चमकते हैं तारीक ख़लाओं में

भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली

मज़लूम परिंदों की मासूम सभाओं में

दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे

कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में

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