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कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी - बशीर बद्र कविता - Darsaal

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

नए लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा

तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना

बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

परेशाँ हो तुम भी परेशाँ हूँ मैं भी

चलो मय-कदे में वहीं बात होगी

चराग़ों की लौ से सितारों की ज़ौ तक

तुम्हें मैं मिलूँगा जहाँ रात होगी

जहाँ वादियों में नए फूल आए

हमारी तुम्हारी मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फ़ाज़ मिलने न पाएँ

न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी

किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

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