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हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी - बशीर बद्र कविता - Darsaal

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी

हिरन की पीठ पर बैठे परिंदे की शरारत सी

वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को

लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हक़ारत सी

उदासी पत-झड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती

पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी

सजाए बाज़ुओं पर बाज़ू वो मैदाँ में तन्हा था

चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी

मेरी आँखों मेरे होंटों पे ये कैसी तमाज़त है

कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी

खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा

रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी

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