Ghazals of Bashir Badr
नाम | बशीर बद्र |
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अंग्रेज़ी नाम | Bashir Badr |
जन्म की तारीख | 1935 |
जन्म स्थान | Bhopal |
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है
वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
तारों भरी पलकों की बरसाई हुई ग़ज़लें
सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
शाम आँखों में आँख पानी में
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता