जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया

जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया

ऐ शौक़ किस बला में गिरफ़्तार कर दिया

इक हो गया इज़ाफ़ा मिरी ज़िंदगी में और

तुम ने जो दिल को माइल-ए-आज़ार कर दिया

दिल की मुझे ख़बर है न दिल को मिरी ख़बर

मिलते ही आँख क्या निगह-ए-यार कर दिया

दिल-बस्तगी के वास्ते दिल को लगाया था

उम्मीद हसरतों ने इक आज़ार कर दिया

रख ली जुनूँ ने बात मिरी उन के सामने

हर आबले से ख़ार नुमूदार कर दिया

हैं सख़्तियाँ बढ़ी हुई ज़िंदाँ में आज-कल

दो-गाम चलना भी मुझे दुश्वार कर दिया

ये कैसा रोग दिल को लगा इंतिज़ार का

आँखों को उन का तालिब-ए-दीदार कर दिया

किस ने करम किया ये मिरे हाल-ए-ज़ार पर

इस बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ से होश्यार कर दिया

मैं ने छुपाया लाख मगर अश्क-ए-ग़म ने आह

ऐ 'राज़' राज़-ए-शौक़ का इज़हार कर दिया

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