दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी
दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी
आज की शब थम गई क्यूँ वक़्त की रफ़्तार भी
ज़ीस्त की नाव न जाने किस किनारे जा लगे
मल्गजी सी धुँद है इस पार भी उस पार भी
दिल की बातें कहने वाले और आहिस्ता ज़रा
गोश-बर-आवाज़ है कोई पस-ए-दीवार भी
आँसुओं का अब्र वो बरसा कि सब कुछ बह गया
हसरतों के शहर भी ज़ख़्मों के लाला-ज़ार भी
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