Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_87b56c14da68b42a8f57e1653dba3be8, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें - बशीर अहमद बशीर कविता - Darsaal

जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें

जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें

क्या पढ़ें पढ़ कर बुझी बे-नूर सतरें क्या करें

कुछ अजब हालत है ऐ दिल कुछ समझ आता नहीं

सो रहें घर जा के या गलियों में घूमें क्या करें

वास्ता पत्थर से पड़ जाए जहाँ सोचूँ वहाँ

क्या करें ज़ोर-ए-बयाँ क़लमें दवातें क्या करें

ऐसी यख़-बस्ता हवा में कोंपलें फूटेंगी क्या?

बारिशों की आरज़ू बे-बर्ग शाख़ें क्या करें

हो गई दलदल ज़मीं धँसते ही रह जाते हैं याँ

क्या करें मोहकम बिनाएँ सुर्ख़ ईंटें क्या करें

शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर

हाल अपना सुब्ह तक बे-रब्त नब्ज़ें क्या करें

(786) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen In Hindi By Famous Poet Basheer Ahmad Basheer. Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen is written by Basheer Ahmad Basheer. Complete Poem Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen in Hindi by Basheer Ahmad Basheer. Download free Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen Poem for Youth in PDF. Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen is a Poem on Inspiration for young students. Share Ji Nahin Lagta Kitabon Mein Kitaben Kya Karen with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.