गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ
गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ
अज़ाब-ए-अर्सा-गह-ए-जब्र-ओ-इख़्तियार में हूँ
ख़याल है तो अभी ढूँढ फिर मिलूँ न मिलूँ
अभी मैं तेरे उड़ाए हुए ग़ुबार में हूँ
भड़क रहा है बदन रूह को ख़बर भी नहीं
ये क्या मक़ाम है ये कैसे शोला-ज़ार में हूँ
मैं कौन हूँ तिरे नज़दीक ये सवाल नहीं
हुबाब हूँ कि सदफ़ बहर-ए-बे-कनार में हूँ
ख़ुद अपने आप से हर दम हूँ बरसर-ए-पैकार
मैं अपनी ज़ात के मैदान-ए-कार-ज़ार में हूँ
में भेद क्या तुझे दूँ बे-कराँ ख़लाओं के
कि मैं अज़ल से इसी हल्क़ा-ए-मदार में हूँ
तलाश किस की है मुझ को अभी ये क्या सोचूँ
'बशीर' अभी तो मैं अपने ही इंतिज़ार में हूँ
(798) Peoples Rate This