जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
ऐसे दीवाने भी इस दौर में कम ही होंगे
हम तो ज़ख़्मों पे भी ये सोच के ख़ुश होते हैं
तोहफ़ा-ए-दोस्त हैं जब ये तो करम ही होंगे
बज़्म-ए-आलम में जब आए हैं तो बैठें कुछ और
बस यही होगा ना कुछ और सितम ही होंगे
जब भी बर्बाद-ए-वफ़ा कोई नज़र आए तुम्हें
ग़ौर से देख लिया करना वो हम ही होंगे
कोई भटका हुआ बादल कोई उड़ती ख़ुश्बू
कौन कह सकता है इक दिन ये बहम ही होंगे
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