Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_47c1e352fd39853a0463d36fac6bc916, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा - बशर नवाज़ कविता - Darsaal

हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा

हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा

एक पैकर में कहाँ क़ैद है पैकर मेरा

मैं कहाँ जाऊँ कि पहचान सके कोई मुझे

अजनबी मान के चलता है मुझे घर मेरा

जैसे दुश्मन ही नहीं कोई मिरा अपने सिवा

लौट आता है मिरी सम्त ही पत्थर मेरा

जो भी आता है वही दिल में समा जाता है

कितने दरियाओं का प्यासा है समुंदर मेरा

तू वो महताब तकें राह उजाले तेरी

मैं वो सूरज कि अंधेरा है मुक़द्दर मेरा

(921) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera In Hindi By Famous Poet Bashar Nawaz. Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera is written by Bashar Nawaz. Complete Poem Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera in Hindi by Bashar Nawaz. Download free Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera Poem for Youth in PDF. Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera is a Poem on Inspiration for young students. Share Har Nai Rut Mein Naya Hota Hai Manzar Mera with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.