हो गए चुप हमें पागल कह कर
जब किसी ने भी न समझा हम को
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रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है
यूँ भी होने का पता देते हैं
रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे
वो मक़ाम-ए-दिल-ओ-जाँ क्या होगा
वक़्त के पास हैं कुछ तस्वीरें
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
दुनिया ने हर बात में क्या क्या रंग भरे
कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
एतिबार-ए-नज़र करें कैसे