वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए
वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए
बहुत रोए मगर रोने न पाए
कुछ इतना शोर था शहर-ए-सबा में
मुसाफ़िर रात-भर सोने न पाए
जहाँ थी हादिसा हर बात 'बाक़ी'
वहीं कुछ हादसे होने न पाए
(794) Peoples Rate This
वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए
बहुत रोए मगर रोने न पाए
कुछ इतना शोर था शहर-ए-सबा में
मुसाफ़िर रात-भर सोने न पाए
जहाँ थी हादिसा हर बात 'बाक़ी'
वहीं कुछ हादसे होने न पाए
(794) Peoples Rate This