रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
अज़्मत-ए-इश्क़ बढ़ा दी हम ने
जब कोई ताज़ा शगूफ़ा फूटा
की गुलिस्ताँ में मुनादी हम ने
जब चमन में न कहीं चैन मिला
बाब-ए-ज़िंदाँ पे सदा दी हम ने
आँच सय्याद के घर तक पहुँची
इतनी शो'लों को हवा दी हम ने
ख़ून-ए-दिल से दर-ए-मय-ख़ाना पर
तेरी तस्वीर बना दी हम ने
दिल को आने लगा बसने का ख़याल
आग जब घर को लगा दी हम ने
(956) Peoples Rate This