नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
देख रहा है अनजाने लोगों का रेला
यूँ तेरी अंजान जवानी राह में आई
जैसे तू बचपन से मेरे साथ न खेला
जंगल के सन्नाटे से कुछ निस्बत तो है
शहर के हंगामे में फिरता कौन अकेला
पहली आग अभी तक है रग रग में 'बाक़ी'
सुनते हैं कल फिर गाँव में होगा मेला
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