हम कहाँ आइना ले कर आए
हम कहाँ आइना ले कर आए
लोग उठाए हुए पत्थर आए
दिल के मलबे में दबा जाता हूँ
ज़लज़ले क्या मिरे अंदर आए
जल्वा जल्वे के मुक़ाबिल ही रहा
तुम न आईने से बाहर आए
दिल सलासिल की तरह बजने लगा
जब तिरे घर के बराबर आए
जिन के साए में सबा चलती थी
फिर न वो लोग पलट कर आए
शेर का रूप बदल कर 'बाक़ी'
दिल के कुछ ज़ख़्म ज़बाँ पर आए
(828) Peoples Rate This