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यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ - बाक़ी अहमदपुरी कविता - Darsaal

यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ

यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ

फूल पत्थर नहीं होते जानाँ

क्यूँ मिरे दिल से कहीं जाते हो

घर से बे-घर नहीं होते जानाँ

वस्ल की शब जो करम तुम ने किए

क्यूँ मुकर्रर नहीं होते जानाँ

हम तुम्हें बुत की तरह पूजते हैं

फिर भी काफ़र नहीं होते जानाँ

ग़म के दीपक नहीं जलते जब तक

दिल मुनव्वर नहीं होते जानाँ

हम तो रहते हैं तुम्हारी हद में

हद से बाहर नहीं होते जानाँ

एक जैसे हैं ख़ुशी के लम्हे

दुख बराबर नहीं होते जानाँ

इस क़दर ख़ूँ न बहाना दिल का

दिल समुंदर नहीं होते जानाँ

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