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तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा - बाक़ी अहमदपुरी कविता - Darsaal

तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा

तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा

जा अब तिरा ख़याल मुझे भी नहीं रहा

तू ने भी मौसमों की पज़ीराई छोड़ दी

अब शौक़-ए-माह-ओ-साल मुझे भी नहीं रहा

मेरा जवाब क्या था तुझे भी ख़बर नहीं

याद अब तिरा सवाल मुझे भी नहीं रहा

जिस बात का ख़याल न तू ने कभी किया

इस बात का ख़याल मुझे भी नहीं रहा

तोड़ा है तू ने जब से मिरे दिल का आइना

अंदाज़ा-ए-जमाल मुझे भी नहीं रहा

'बाक़ी' में अपने फ़न से बड़ा पुर-ख़ुलूस हूँ

इस वास्ते ज़वाल मुझे भी नहीं रहा

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