Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_98ac2d30549a53d4f4f9c1630ab91c04, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की - बाक़ी अहमदपुरी कविता - Darsaal

रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की

रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की

अब कोई बात नहीं बात परेशानी की

मेरे दरिया कभी दरिया भी हुआ करते थे

अब भी आवाज़ सी आती है मुझे पानी की

आइना-ख़ाने के बाहर वो मुझे पूछते हैं

आइना-ख़ाने में क्या बात थी हैरानी की

अब ग़ज़ालाँ से कहो छुप के कहीं बैठ रहें

आमद आमद है किसी ग़ूल-ए-बयाबानी की

हम खुले घर के मकीनों की यही आदत है

हम न दरबान हुए और न दरबानी की

याद कर लेना बहत्तर की कहानी 'बाक़ी'

जंग छिड़ जाए किसी वक़्त अगर पानी की

(1017) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki In Hindi By Famous Poet Baqi Ahmad Puri. Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki is written by Baqi Ahmad Puri. Complete Poem Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki in Hindi by Baqi Ahmad Puri. Download free Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki Poem for Youth in PDF. Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki is a Poem on Inspiration for young students. Share Roz-e-wahshat Hai Mere Shahr Mein Virani Ki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.