Love Poetry of Baqaullah 'Baqa'
नाम | बक़ा उल्लाह 'बक़ा' |
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अंग्रेज़ी नाम | Baqaullah 'Baqa' |
उल्फ़त में तिरी ऐ बुत-ए-बे-मेहर-ओ-मोहब्बत
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
इश्क़ ने मंसब लिखे जिस दिन मिरी तक़दीर में
इश्क़ में बू है किबरियाई की
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के
ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
रंग में हम मस से बतर हो चुके
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
इश्क़ में बू है किबरियाई की
इस लब से रस न चूसे क़दह और क़दह से हम
ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद
दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह