रंग में हम मस से बतर हो चुके
रंग में हम मस से बतर हो चुके
लेक उसी मस से कि ज़र हो चुके
रुख़ को तिरे शब से मैं तश्बीह दूँ
पर इसी शब से कि सहर हो चुके
चेहरा तिरा है मह-ए-नौ ऐ सनम
पर वो मह-ए-नौ कि क़मर हो चुके
रश्क-ए-गुल सेब है तेरा ज़नख़
लेक वही गुल कि समर हो चुके
क़तरा-ए-नैसाँ हैं वो दंदाँ 'बक़ा'
पर वही क़तरा कि गुहर हो चुके
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