Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_8af3ac9b468ead6dff119882a3e0c268, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है - बक़ा उल्लाह 'बक़ा' कविता - Darsaal

कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है

कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है

दरपेश मय-कशों को फिर जंग-ए-मोहतसिब है

होता है शीशा-ए-दिल चूर उस की गुफ़्तुगू से

यारब ये पंद-ए-नासेह या संग-ए-मोहतसिब है

मुँह सुर्ख़ हो रहा है बीम-ए-मुग़ाँ से उस का

जो कुछ है रंग-ए-मीना सो रंग-ए-मोहतसिब है

अज़-बस गिराँ है उस पर मीना से मय की क़ुलक़ुल

पढ़ना भी चार क़ुल का अब नंग-ए-मोहतसिब है

हरगिज़ 'बक़ा' न रहियो दौर-ए-फ़लक से ग़ाफ़िल

मस्तों की नित कमीं में सर-चंग-ए-मोहतसिब है

(784) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai In Hindi By Famous Poet Baqaullah 'Baqa'. Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai is written by Baqaullah 'Baqa'. Complete Poem Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai in Hindi by Baqaullah 'Baqa'. Download free Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai Poem for Youth in PDF. Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Kal Mai-kade Ki Jaanib Aahang-e-mohtasib Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.