काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
कुछ संग बच रहा था सो उस बुत का दिल बना
इतना हुआ ज़ईफ़ कि मेरे मज़ार पर
जो बर्ग-ए-गुल पड़ा है सो छाती का सिल बना
हो कर सियह 'बक़ा' का सितारा नसीब का
रोज़-ए-नुख़ुस्त आरिज़-ए-ख़ूबाँ का तिल बना
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