Ghazals of Baqaullah 'Baqa'
नाम | बक़ा उल्लाह 'बक़ा' |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Baqaullah 'Baqa' |
ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
थे हम इस्तादा तिरे दर पे वले बैठ गए
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
रंग में हम मस से बतर हो चुके
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है
क़ज़ा ने हाल-ए-गुल जब सफ़्हा-ए-तक़दीर पर लिक्खा
नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो
मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है
काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
जो चश्म-ओ-दिल से चढ़ा दूँ नाले ब-आब-ए-अव्वल दोवम-ब-आतिश
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ
इश्क़ में बू है किबरियाई की
इस लब से रस न चूसे क़दह और क़दह से हम
हाँ मियाँ सच है तुम्हारी तो बला ही जाने
ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद
दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह