दवा बग़ैर कोई तिफ़्ल मर गया तो क्या हुआ
दवा बग़ैर कोई तिफ़्ल मर गया तो क्या हुआ
बस एक फूल ही तो था बिखर गया तो क्या हुआ
कभी कभी तो रौशनी भी इक अज़ाब-ए-जाँ हुई
वो चाँदनी से तेरी कोख भर गया तो क्या हुआ
न रात ही सँवर गई न रौशनी ही मर गई
अँधेरी बाउली में चाँद उतर गया तो क्या हुआ
कमाल जुगनुओं का था कि रौशनी में खो गए
फ़रेब अपने साए ही से डर गया तो क्या हुआ
मिरे लिए तो ख़्वाब एक चश्मा-ए-हयात था
किसी को ख़्वाब ख़्वाब था बिखर गया तो क्या हुआ
गुज़रते मौसमों के क़ाफ़िले तो रौंदते रहे
ग़रीब कोई सहन से गुज़र गया तो क्या हुआ
न मैं कोई सवार हूँ न कोई माल-दार हूँ
उधर रहा तो क्या हुआ इधर गया तो क्या हुआ
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