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मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से - बाक़र मेहदी कविता - Darsaal

मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से

मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से

जीता हूँ मसाइब की बक़ा मेरे लिए है

सच बोलने वाले को डराते हो सितम से

रुक जाओ ठहर जाओ जज़ा मेरे लिए है

अफ़्सोस कटी उम्र कुतुब-ख़ानों में लेकिन

ये वुसअत-ए-सहरा ये फ़ज़ा मेरे लिए है

में राह-ए-यगाना पे हमेशा से चला हूँ

रुस्वाई तबाही तो सदा मेरे लिए है

मुजरिम हूँ कि फ़ाशिज़्म के साए में हूँ जीता

'बाक़र' को बचा लो ये सज़ा मेरे लिए है

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