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लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या - बाक़र मेहदी कविता - Darsaal

लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या

लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या

जिन्हें न होश हो ग़म का वो ग़म के मारे क्या

महकते ख़ून से सहरा जले हुए गुलशन

नज़र-फ़रेब हैं दुनिया के ये नज़्ज़ारे क्या

उम्मीद-ओ-बीम की ये कशमकश है राज़-ए-हयात

सुकूँ-नवाज़ हैं इस के सिवा सहारे क्या

कोई हज़ार मिटाए उभरते आए हैं

हम अहल-ए-दर्द जुनून-ए-जफ़ा से हारे क्या

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