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कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप - बाक़र मेहदी कविता - Darsaal

कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप

कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप

टूटा दिल अब कैसे जुड़ेगा सच्ची क़स्में न खाईं आप

पत्थर सीने पर रख लेंगे जीते-जी जाएँगे

आप को क़ातिल कौन कहेगा क्यूँ नाहक़ घबराएँ आप

राह-ए-वफ़ा पर चलते चलते अपनी अज़्मत भूल गए थे

छोड़ी हम ने रस्म-ए-परस्तिश अब न करम फ़रमाएँ आप

सेहर किया ए'जाज़ किया है दर्द का शो'ला बर्फ़ बना है

तर्क-ए-मोहब्बत हम को मुबारक क्यूँ नाहक़ पछताएँ आप

जोश-ए-जुनूँ का दौर नहीं है दिल के सुकूँ का दौर नहीं है

ग़म है नया कैसे कम होगा आएँ आप न आएँ आप

तिश्ना-लबी कुछ और बढ़ी है मय-ख़्वारी की धूम मची है

आख़िर हम से रिंद-ए-बला-कश कैसे प्यास बुझाएँ आप

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