Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_57893b59181a1026758f4355afe42888, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए - बाक़र मेहदी कविता - Darsaal

फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए

फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए

न कम हुआ किसी मंज़िल पे वलवला दिल का

ये सोच कर तिरी महफ़िल से हम चले आए

कि एक बार तो बढ़ जाए हौसला दिल का

पलट के अब न कभी लखनऊ से गुज़रेगा

निकल गया है बहुत दूर क़ाफ़िला दिल का

हरीफ़-ए-इश्क़ कोई हो हरीफ़-ए-ग़म तो नहीं

किसी से हो न सकेगा मुक़ाबला दिल का

कोई किसी का नहीं हम-ज़बाँ ज़माने में

करें तो किस से करें जा के अब गिला दिल का

शिकस्त खाने का यारा नहीं प क्या कीजे

इक अजनबी से पड़ा है मुक़ाबला दिल का

तुम्हारी नज़्र भी लाए जो हम तो क्या लाए

ज़रा सँभाल के रखना ये आबला दिल का

(961) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue In Hindi By Famous Poet Baqar Mehdi. Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue is written by Baqar Mehdi. Complete Poem Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue in Hindi by Baqar Mehdi. Download free Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue Poem for Youth in PDF. Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue is a Poem on Inspiration for young students. Share Fareb Kha Ke Bhi Sharminda-e-sukun Na Hue with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.