Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_25ed0eaee597ea9f2c090a5d63d0e69d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं! - बाक़र मेहदी कविता - Darsaal

बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!

बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!

अजब क़िस्सा है सब कुछ जान कर मुबहम समझते हैं

हवाएँ तेज़-तर हैं आज बादल आने वाले हैं

तड़पते सर्द झोंकों को भी सब मौसम समझते हैं

ज़मीं करवट बदलती है नए रंगों में ढलती है

नुजूमी किस तरह दुनिया के पेच-ओ-ख़म समझते हैं

फ़लक ग़ाएब हुआ ये चाँद तारे ख़ाक-दाँ से हैं

इन्हें भी लोग इक दुनिया नया आलम समझते हैं

बहुत दाना-ए-राज़ आए हज़ारों नुक्ता-दाँ आए

समझने के लिए वो ज़िंदगी को ग़म समझते हैं

हुई तख़्लीक़ कैसे आज तक कोई नहीं समझा

निकाले कब गए ये हज़रत आदम समझते हैं

न कोई अश्क-शोई है न चेहरा ज़र्द है 'बाक़र'

हमारी ख़ामुशी को फिर भी वो मातम समझते हैं

(915) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! In Hindi By Famous Poet Baqar Mehdi. Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! is written by Baqar Mehdi. Complete Poem Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! in Hindi by Baqar Mehdi. Download free Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! Poem for Youth in PDF. Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! is a Poem on Inspiration for young students. Share Bahut Zi-fahm Hain Duniya Ko Lekin Kam Samajhte Hain! with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.