सर-ए-सौदा पे तिरे शेर-ए-रसा से 'आगाह'
सिलसिला हश्र का बरपा न हुआ था सो हुआ
Wasi Shah
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लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया
देखते देखते सितम तेरा
क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ
दिल को ले जी को अब लुभाते हो
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ
महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
दिल में दिलदार निहाँ था मुझे मा'लूम न था
रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा
क्या ख़ूब मेरे बख़्त की मंडवे चढ़ी है बेल