क्या ख़ूब मेरे बख़्त की मंडवे चढ़ी है बेल
ना बाग़ न बहार न काँटा ना फूल हूँ
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मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
दिल में दिलदार निहाँ था मुझे मा'लूम न था
रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा
क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ
महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया
क्या फ़ाएदा है क़िस्सा-ए-रिज़वान से तुझे
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
देखते देखते सितम तेरा
सर-ए-सौदा पे तिरे शेर-ए-रसा से 'आगाह'
नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में