क्या फ़ाएदा है क़िस्सा-ए-रिज़वान से तुझे
कोई शम्अ-रू परी सते तू भी लगन लगा
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महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
देखते देखते सितम तेरा
दिल में दिलदार निहाँ था मुझे मा'लूम न था
क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ
दिल को ले जी को अब लुभाते हो
शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ
क्या ख़ूब मेरे बख़्त की मंडवे चढ़ी है बेल
नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में
सर-ए-सौदा पे तिरे शेर-ए-रसा से 'आगाह'
मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा