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अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा - बाक़र आगाह वेलोरी कविता - Darsaal

अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा

अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा

निगाह में तिरी हरगिज़ न भाया अश्क मिरा

मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास

पे गर्म-जोशी से क्या क्या मनाया अश्क मिरा

हज़र ज़रूरी है ऐ सर्व-ए-नाज़ इस से तुझे

कि आबशार-ए-मिज़ा को बहाया अश्क मिरा

हुआ है कौन से ख़ुर्शीद-रू से गर्म इतना

कि मेरे दिल को जो ऐसा जलाया अश्क मिरा

ब-रंग-ए-ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा हो गया था ये दिल

सो वैसे मुर्दा को पल में जलाया अश्क मिरा

हुआ वो जब नज़र-अंदाज़ यार का 'आगाह'

मुझे ये बे-असरी पर हँसाया अश्क मिरा

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