तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
मैं तिरी याद में जलता हूँ
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हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
गर्मी-ए-शिद्दत-ए-जज़्बात बता देता है
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
लोग चले हैं सहराओं को
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
कैसा लम्हा आन पड़ा है
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
माँ
संदेसा