गर्मी-ए-शिद्दत-ए-जज़्बात बता देता है
दिल तो भूली हुई हर बात बता देता है
Jaun Eliya
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क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
माँ
लोग चले हैं सहराओं को
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
संदेसा
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
मुझे इक शेर कहना है
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम